यह महज एक जलाशय नहीं है। कीरत सागर नाम के दोहरे निहितार्थ है। लगभग दो सौ एकड़ में फैले क्षेत्र में इसे सागर का स्वरूप दिया तो 1100 साल पहले इसी के तट बंध में चंदेली सेनाओं ने दिल्ली नरेश पृथ्वीराज चौहान के छक्के छुड़ा अपनी कीर्ति पताका फहराई। शायद इसी लिए महाराजा कीर्ति वर्मन ने इसका नाम कीरत सागर रखा। महोबा के शौर्य की मूक गवाह पुरातत्व संरक्षित यह धरोहर अवैध कब्जों की चपेट में आ अपना अस्तित्व खो रही है।
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इतिहास गवाह है जब तक कीरत सागर में पानी रहा मुख्यालय में जल संकट नहीं रहा। अपनी दम पर पूरे एक हजार साल तक चंदेलों की पानीदारी का प्रतीक रही यह विरासत अब सिमटती जा रही है। सरोवर के पश्चिमी तट में आल्हा ऊदल के सैन्य प्रशिक्षक ताला सैयद की पहाडि़या समेत जलाशय क्षेत्रों में कई मकान बन गए है। राठ रोड से जुड़े विशाल भूभाग में भूमाफिया अपना विस्तार कर रहे है। हद है कि दर्जनों लोग इसमें सब्जी की खेती करते है। इन लोगों ने एक दर्जन से ज्यादा स्थाई व अस्थाई निर्माण कर रखे है। सरोवर के दक्षिणी छोर में भी भूमाफियाओं का प्लाट बेंचने का अभियान जारी है। चारों ओर बड़े पैमाने पर अतिक्रमण के चलते पानी का पहुंच मार्ग अवरुद्ध है। नतीजतन बीते एक दशक से इसमें क्षमता का एक चौथाई जल भराव भी नहीं हो पा रहा। नतीजा भूगर्भीय पानी समाप्त होने के रूप में सामने है। तीन दशक पूर्व पुरातत्व विभाग ने इसे संरक्षित विरासत घोषित किया था पर संरक्षण के नाम पर हुआ कुछ नहीं।
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सर्व धर्म सम भाव का प्रतीक है कीरत सागर
कीरत सागर मात्र जलाशय नहीं, इसके तटबंध में हिंदू, मुस्लिम व ईसाई समुदाय के आधा दर्जन प्राचीन पूजा स्थल हैं। हर दिन सैकड़ों लोग इन स्थलों में पहुंच अपने-अपने तरीके से इबादत करते है। इनका रखरखाव भी सम्बन्धित धर्म के लोग ही करते है। पुरातत्व विभाग ने बीते तीस साल में इनमें से किसी के रखरखाव को एक ईट भी नहीं लगाई। हद तो यह कि विभाग के संरक्षण सहायक एसके सिन्हा को यह भी गवारा नहीं कि कोई दूसरा इन्हें बचाने की कोशिश करें।
स्रोत-अमर उजाला
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