सिंगौरगढ़ किला के रहस्य आज भी बने हैं अबूझ पहेली
जिले के जबेरा से जनपद के सिंगौरगढ़ किला आज भी रानी दुर्गावती की वीरता का गौरवशाली इतिहास लिए मजबूती के साथ खड़ा है। किले की दीवारों को इस मजबूती के साथ बनाया गया था कि इसकी सुरक्षा को भेद पाना मुगल शासकों के बस की बात नहीं थी। क्योंकि प्रकृति प्रदत्त भौगोलिक पर्वत श्रृंखलाओं के बीच बने किले की सुरक्षा में पहाड़ सुरक्षा दीवार बनकर खड़े थे, तो किले के तह खानों से निकली सुरंग का अंतिम छोर रानी व रानी की सैनिक टुकडिय़ों को ही पता था।
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वहीं पहाड़ों पर बने सैनिक टुकड़ियों की तैनाती के तोपखाने सैनिकों के लिए 32 किमी की पैदल चलने की आलोनी दीवार का रास्ता जहां इनकी राज्य की सुरक्षा को सेंध लगाना किसी बाहरी सैन्य शक्ति के लिए नामुमकिन थी। लेकिन इस किले का संरक्षण करना तक पुरातत्व विभाग भूल गया और धीरे-धीरे सिंगौरगढ़ किला अपने अस्तित्व को बचाने की लड़ाई पांच सौ वर्षों से लड़ रहा है। सिंगौरगढ़ जलाशय की निश्चित दूरी से जलाशय की प्राकृतिक सौंदर्यता देखते ही बनती है। बताया गया है कि तालाब के अंदर ही एक बावली बनी है। जहां पर स्वर्ण मुद्राओं का खजाना छिपे होने की बात कही जाती है। सैकड़ों वर्ष पुराने जलाशय में पानी कभी खत्म नहीं होने की वजह से लाखों प्रयासों के बाद जलाशय के अंदर तक कोई पहुंच नहीं पाया और वावली भू गर्व में चली गई है। मान्यताएं है कि सिंगौरगढ़ तालाब के अथाह जल के अंदर अनेकों रहस्य हैं, लेकिन आज तक इनकी खोज करने की हिम्मत कोई नहीं उठा पाया। जिसने भी जलाशय व किले के अंदर धन के लालच में खुदाई की है उसके कुल का विनाश हो गया है या फिर पागल हो गया है। जिसके अनेकों उदाहरण क्षेत्र के बुजुर्गों द्वारा बताए जाते हैं। स्थानीय निवासी रामप्रसाद आदिवासी, बृजेंद्र आदिवासी के अनुसार जलाशय से जुड़ी एक किवदंती है, जिसके अनुसार सिगौरगढ़ जलाशय में रानी दुर्गावती के शासनकाल की गदर में स्वर्ण मुद्राएं सहित रानी का पारस पत्थर इस जलाशय के अंदर डाल दिया गया था।
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रानी दुर्गावती की वीरता की कहानी बयां करता सिंगौरगढ़ किला।
ओमप्रकाश शर्मा| जबेरा
जिले के जबेरा से जनपद के सिंगौरगढ़ किला आज भी रानी दुर्गावती की वीरता का गौरवशाली इतिहास लिए मजबूती के साथ खड़ा है। किले की दीवारों को इस मजबूती के साथ बनाया गया था कि इसकी सुरक्षा को भेद पाना मुगल शासकों के बस की बात नहीं थी। क्योंकि प्रकृति प्रदत्त भौगोलिक पर्वत श्रृंखलाओं के बीच बने किले की सुरक्षा में पहाड़ सुरक्षा दीवार बनकर खड़े थे, तो किले के तह खानों से निकली सुरंग का अंतिम छोर रानी व रानी की सैनिक टुकडिय़ों को ही पता था।
वहीं पहाड़ों पर बने सैनिक टुकड़ियों की तैनाती के तोपखाने सैनिकों के लिए 32 किमी की पैदल चलने की आलोनी दीवार का रास्ता जहां इनकी राज्य की सुरक्षा को सेंध लगाना किसी बाहरी सैन्य शक्ति के लिए नामुमकिन थी। लेकिन इस किले का संरक्षण करना तक पुरातत्व विभाग भूल गया और धीरे-धीरे सिंगौरगढ़ किला अपने अस्तित्व को बचाने की लड़ाई पांच सौ वर्षों से लड़ रहा है। सिंगौरगढ़ जलाशय की निश्चित दूरी से जलाशय की प्राकृतिक सौंदर्यता देखते ही बनती है। बताया गया है कि तालाब के अंदर ही एक बावली बनी है। जहां पर स्वर्ण मुद्राओं का खजाना छिपे होने की बात कही जाती है। सैकड़ों वर्ष पुराने जलाशय में पानी कभी खत्म नहीं होने की वजह से लाखों प्रयासों के बाद जलाशय के अंदर तक कोई पहुंच नहीं पाया और वावली भू गर्व में चली गई है। मान्यताएं है कि सिंगौरगढ़ तालाब के अथाह जल के अंदर अनेकों रहस्य हैं, लेकिन आज तक इनकी खोज करने की हिम्मत कोई नहीं उठा पाया। जिसने भी जलाशय व किले के अंदर धन के लालच में खुदाई की है उसके कुल का विनाश हो गया है या फिर पागल हो गया है। जिसके अनेकों उदाहरण क्षेत्र के बुजुर्गों द्वारा बताए जाते हैं। स्थानीय निवासी रामप्रसाद आदिवासी, बृजेंद्र आदिवासी के अनुसार जलाशय से जुड़ी एक किवदंती है, जिसके अनुसार सिगौरगढ़ जलाशय में रानी दुर्गावती के शासनकाल की गदर में स्वर्ण मुद्राएं सहित रानी का पारस पत्थर इस जलाशय के अंदर डाल दिया गया था।
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